Major Khan's demise : A Major Loss To Us
किसान आंदोलन को खड़ा कर खुद शहीद हो गया मेजर खान झंडी मेजर खान। इसी नाम से मेरे फोन में सेव था उनका नम्बर। झंडी उनके गांव का नाम था जो पंजाब के पटियाला जिला में है। आपने मेजर खान को किसान नेता डॉ दर्शन पाल के साथ देखा होगा या सिंघु बॉर्डर पर कजारिया ऑफिस या कहीं ओर। परंतु हमेशा हमारे दिलों में रहते थे। किसान आंदोलन का सच्चा सेवादार जिसने अपने घर पर कह रखा था कि वो संघर्ष जीत कर ही घर आएगा। दिल्ली की सीमाओं पर अब लड़ाई तीन कानूनो के लिखित वापस लेने की ही बची है क्योंकि असल लड़ाई तो हमने मेजर खान जैसे फौजियों के दम से जीत ली है। मेजर खान उम्र 47 साल, एक गरीब मुस्लिम परिवार में जन्मा और खून पसीना एक कर फौज में भर्ती होता है। अपनी 24 साल की फौज की सेवा में हर साथी और सीनियर का चहेते मेजर खान की हंसमुख पहचान को कोई कैसे भूल सकेगा। आर्मी से रिटायर्ड होने के बाद वे क्रांतिकारी किसान यूनियन में ग्राम इकाई में काम करने लगे और थापर कॉलेज पटियाला में केअर टेकर का काम कर रहे थे कि तीन कृषि कानून आये और इसी ने मेजर खान को मुझसे और हज़ारो और लोगों से मिलवाया। अगस्त से...